Sunday, January 31, 2016

तीन टा कविता विजयनाथ झा, पटना

1 . नव वर्षक एहि मधुर पहरमे 
नव वर्षक  एहि मधुर पहरमे 
समुपस्थित सब बंधु-प्रवरमे 
अभिनंदन वंदन प्रतिवेदित 
हास होइ उल्लास नवोदित। 
भाव-स्वभाव भरल हो समता
सुरभि-स्नेह पसरय घर-घरमे। 
बाटि रहल छी हर्ष समुज्वल- 
सभक लेल हम गाम-शहरमे।                
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2. हमर नाम परिचय सादर सुरत हम
हमर नाम परिचय सादर सुरत हम
नमन कोटिश: देश भारत भरत हम। 
ललित रूप वैविध्य अछि गाम घर-घर
नगर सब समुन्नत क्रिया, कर्म, व्रत हम।
हमर सभ्यता अछि पुरातन, सनातन 
प्रगतिशील तैयो विनयशील नत हम। 
समर मे शौर्य सिद्धांत संबल
तिरंगा हमर प्राण प्रिय प्राणवत हम। 
सदाचार, सुविचार, संयम, सुरक्षा
बहुरूपता लौह, पारद, रजत हम। 
वैविध्य व्यंजक विविध रूप आखर
लालित्य- लावण्य उल्लासरत हम। 
हमर स्वाभिमानक कथा लोमहर्षक
कएल त्याग उत्सर्ग वाणीवरद हम। 
विविधता हमर धर्म परिचय सुरुचिगर
हमर लोक परिवार संयुक्त शत हम। 
हमर आंकलन क' रहल आय दुनिया 
समादृत सभक बीच संसारवत हम।
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3. चेतना केर नव सृजनमे
चेतना केर नव सृजनमे भाव नूतन खास भरिऔ, 
व्यंजना चमकम मनोहर भू-भवन आकास भरिऔ। 
संग पुरबामे अहां केर अछि युवा पीढ़ी सबल, 
मार्गदर्शन हो सुपथगर मिथक नव इतिहास भरिऔ। 
शब्द श्रद्धांजलि समर्पण ओ करू जे प्रेरणा प्रद, 
गूढ़ नहि गुण ग्राह्य सब लए भ्रम रहित विश्वास भरिऔ।
ज्ञानकेर देखल अनादर वेदना ई कष्ट भारी, 
नहि उचित अवहेलना ई द्वेष नहि आवेश भरिऔ। 
शक्तिपीठक मूल थाती ऋषि मुनिक ई यज्ञशाला,
शैव विद्यापति प्रकाशक चहुमुखी विन्यास भरिऔ। 
शब्द बीथी मे नुकाएल कांट-कुश सब कात केने, 
शरद सायं भोर फागुन लोक मे उल्लास भरिऔ।
पर्व ई गणतंत्र सम्मुख सांस्कृतिक अवदान धएने
पुरिऔ संबंध-दृढ़ता लोक हिट सायास भरिऔ।
चेतना केर नव सृजन में भाव नूतन खास भरिऔ।
व्यंजना चकमक मनोहर भू-भवन आकास भरिऔ।                                
पर्व ई गणतंत्र सम्मुख सांस्कृतिक अवदान धएने, 
पूरिऔ संबंध-दृढ़ता लोक हित सायास भरिऔ. 
चेतना केर नन सृजनमे भाव नूतन खास भरिऔ, 
व्यंजना चकमक मनोहर भू-भवन आकास भरिऔ.

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