Thursday, June 7, 2007

स्वयं से संवाद

मित्र पंकज पराशर कविता संग्रह समय के अकानैत में एक कविता छैत जे स्वयं से संवाद। ओं मे पंकजजी लिखय छैत जे
कतेक दिन सँ सोचैत छी
सोचिते रही जाईत छी स्वयं के किछु कहब
किछु सुनाब स्वयं सँ नियारैत छी कतेक बेर
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आब गप्प करैया पड़त खुलि कई
निकलिया पड़त समय
स्वयं सँ संवादक बात आब
तरल नही जा सकैई बेशी दिन.