Tuesday, February 2, 2016

मैथिली भूषण मायानंद मिश्र

मैथिली भूषण मायानंद मिश्र को श्रद्धांजलि

मैथिली और हिंदी के वयोवृद्ध साहित्यकार 82 वर्षीय मायानन्द मिश्र को ‘मंत्रपुत्र’ के लिए वर्ष 1988में साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया था। डॉ. मिश्र को भारत सरकार के साहित्य अकादमी के अलावा बिहार सरकार द्वारा ग्रियर्सन अवार्ड भी मिल चुका है। वर्ष 2007 में उन्हें प्रबोध साहित्य सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। मिश्र का जन्म 1934 में बिहार के सहरसा जिला के बनैनिया गांव में हुआ। 1956 में प्रो. मिश्र ऑल इंडिया रेडियो पटना से जुड़े जहां उस समय के लोकप्रिय कार्यक्रम 'चौपालमें उनकी जादुई आकर्षक आवाज समां बांध देती थी। वर्ष 1970 में उन्हें साहित्य अकादमी की सलाहकार समिति का सदस्य मनोनीत किया गया। मायानंद मिश्र जी के1967 में राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित उपन्यास ''माटी के लोग सोने की नईया'' को हिंदी साहित्य में आंचलिक-सामाजिक रचनाओं में मील का पत्थर माना जाता है। प्रस्तुत है उनकी कुछ कविताएँ. मैथिली से जिनका अनुवाद युवा लेखक विनीत उत्पल ने किया है- जानकी पुल. 
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मुखौटा


उस दिन एक अद्भुत घटना घटी
वह बिना मुखौटा लगाए चला आया था सड़क पर 
आश्चर्य!
आश्चर्य यह कि उसे पहचान नहीं पा रहा था कोई 
लोग उसे पहचानते थे सिर्फ मुखौटा के साथ
लोग उसे पहचानते थे मुखौटे की भंगिमा के साथ
लोग मुखौटे की नकली हंसी को ही समझते थे असल हंसी
मुखौटा ही बन गई थी उसकी वास्तविकता
बन गई थी उसका अस्तित्व 
वह घबरा गया
देने लगा अपना परिचय
देते ही रहा अपना परिचय
देखियेमैंमैं ही हूंइसी शहर का हूं
देखिये-
बाढ़ में बहती चीजों की तरह सड़क पर बहती जा रही छोड़विहीन अनियंत्रित भीड़
चौराहा भरा हुआ है हिंसक जानवरों से
गली में है रोशनी से भरा अंधियारा
कई हंसी से होने वाली आवाजकई हाथ
सब कुछ है अपने इसी शहर का
है या नहीं?
देखिये
सड़क के नुक्कड़ पर रटे-रटाए
प्रलाप करती सफेद धोती कुर्ता-बंडी
सड़क परब्लाउज के पारदर्शी फीता को नोचते
पीछे पीछे आती कई घिनौनी दृष्टि
देखिये
अस्पताल के बरामदे पर नकली दवाई से दम तोड़ते असली मरीज
एसेम्बली के गेट पर गोली खाती भूखी भीड़
वकालतखाना में कानून को बिकती जिल्दहीन किताब
मैं कह सकता हूं सभी बातें अपने नगर को लेकर 
मैं इसी शहर का हूंविश्वास करें
लेकिन लोगों ने कर दिया पहचानने से इनकार
वह घबरा गयाडर गया और  भागा अपने घर की ओर 
घर जाकर फिर से पहन लिया उसने अपना मुखौटा
तो पहचानने लगे सब उसे तुरंत
और  उस दिन से
वह कभी भी बाहर सड़क पर नहीं आया बिना मुखौटा लगाये।
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युग वैषम्य
कर्ण का कवच-कुंडल जैसा
हम अपनी संपूर्ण योगाकांक्षा को
दे दिया परिस्थति-विप्र को दान
मेरे पिता नहीं थे द्रोणाचार्य
बावजूद इसके मैं हूं अश्वत्थामा
वंचना मेरी मां है
जो कुंठा का दूध छोड़ रही है।
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साम्राज्यवाद
विश्व शांति की द्रौपदी के कपड़े
खींच रहे हैं अंधे के संतान
(दृश्य की वीभत्सता का क्या कुछ है भान)

कौरवी-लिप्सा निरंतर आज
बढ़ता जा रहा है दिन आैर रात।
खो चुका है बुजुर्ग जैसे आचार्य की प्रज्ञा
मूकनीरवक्षुब्ध और असहाय!
किंतु!
किंतु बीच में उठ रहा है भूकंप
जन-मन का कृष्ण फिर से
ढूंढ रहे हैं अपना शंख।

अनुवाद: विनीत उत्पल

Sunday, January 31, 2016

तीन टा कविता विजयनाथ झा, पटना

1 . नव वर्षक एहि मधुर पहरमे 
नव वर्षक  एहि मधुर पहरमे 
समुपस्थित सब बंधु-प्रवरमे 
अभिनंदन वंदन प्रतिवेदित 
हास होइ उल्लास नवोदित। 
भाव-स्वभाव भरल हो समता
सुरभि-स्नेह पसरय घर-घरमे। 
बाटि रहल छी हर्ष समुज्वल- 
सभक लेल हम गाम-शहरमे।                
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2. हमर नाम परिचय सादर सुरत हम
हमर नाम परिचय सादर सुरत हम
नमन कोटिश: देश भारत भरत हम। 
ललित रूप वैविध्य अछि गाम घर-घर
नगर सब समुन्नत क्रिया, कर्म, व्रत हम।
हमर सभ्यता अछि पुरातन, सनातन 
प्रगतिशील तैयो विनयशील नत हम। 
समर मे शौर्य सिद्धांत संबल
तिरंगा हमर प्राण प्रिय प्राणवत हम। 
सदाचार, सुविचार, संयम, सुरक्षा
बहुरूपता लौह, पारद, रजत हम। 
वैविध्य व्यंजक विविध रूप आखर
लालित्य- लावण्य उल्लासरत हम। 
हमर स्वाभिमानक कथा लोमहर्षक
कएल त्याग उत्सर्ग वाणीवरद हम। 
विविधता हमर धर्म परिचय सुरुचिगर
हमर लोक परिवार संयुक्त शत हम। 
हमर आंकलन क' रहल आय दुनिया 
समादृत सभक बीच संसारवत हम।
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3. चेतना केर नव सृजनमे
चेतना केर नव सृजनमे भाव नूतन खास भरिऔ, 
व्यंजना चमकम मनोहर भू-भवन आकास भरिऔ। 
संग पुरबामे अहां केर अछि युवा पीढ़ी सबल, 
मार्गदर्शन हो सुपथगर मिथक नव इतिहास भरिऔ। 
शब्द श्रद्धांजलि समर्पण ओ करू जे प्रेरणा प्रद, 
गूढ़ नहि गुण ग्राह्य सब लए भ्रम रहित विश्वास भरिऔ।
ज्ञानकेर देखल अनादर वेदना ई कष्ट भारी, 
नहि उचित अवहेलना ई द्वेष नहि आवेश भरिऔ। 
शक्तिपीठक मूल थाती ऋषि मुनिक ई यज्ञशाला,
शैव विद्यापति प्रकाशक चहुमुखी विन्यास भरिऔ। 
शब्द बीथी मे नुकाएल कांट-कुश सब कात केने, 
शरद सायं भोर फागुन लोक मे उल्लास भरिऔ।
पर्व ई गणतंत्र सम्मुख सांस्कृतिक अवदान धएने
पुरिऔ संबंध-दृढ़ता लोक हिट सायास भरिऔ।
चेतना केर नव सृजन में भाव नूतन खास भरिऔ।
व्यंजना चकमक मनोहर भू-भवन आकास भरिऔ।                                
पर्व ई गणतंत्र सम्मुख सांस्कृतिक अवदान धएने, 
पूरिऔ संबंध-दृढ़ता लोक हित सायास भरिऔ. 
चेतना केर नन सृजनमे भाव नूतन खास भरिऔ, 
व्यंजना चकमक मनोहर भू-भवन आकास भरिऔ.

Saturday, January 30, 2016

नव बरखक सप्पथ- शुनतारो तानीकावा

सप्पथ खाय छी शराब आ सिगरेट नै छोड़ब
सप्पथ खाय छी, जिनका सं नफरत करैत छी
हुनका नहा देब नीच शब्द सं
सप्पथ खाय छी, सुनर छौंड़ी सबके ताकब
सप्पथ खाय छी जे हंसयके जखैन उचित मौका लागत, खूब मुंह खोलिके हंसब
सूर्यास्त को देखब करूंगा बिसुरल बिसुरल
फ़सादिक भीड़के देखब नफ़रत सं
सप्पथ खाय छी जे मनके हिलाबैक बला खिस्सा पर कानैत शंका करब
दुनिया आ देस कs vs कs दिमागी बहस नै करब
खराब कविता लिखब आ नीक सेहो
सप्पथ खाय छी जे रिपोर्टरके नै बतायब अप्पन विचार
सप्पथ खाय छी जे दोसर टीवी नै कीनब
सप्पथ खाय छी जे अंतरिक्ष हवाई जहाज पर चढ़ैक इच्छा नै करब
सप्पथ खाय छी जे सप्पथ टूटहिं सं अफसोस नै करब
एकरहि लs कs हम सब दस्तख़त करैत छी.
अनुवाद: विनीत उत्पल

Friday, January 29, 2016

शंका

दुनिया मे अछि बड़ रास बीमारी
माथ दुखा रहल अछि केकरो ते कियो अछि पेट गुड़-गुड़ सं तंग
आंखि सं नोर बहि रहल अछि ते कान मे दर्द अछि केकरो
सूगर बेसि भेल ते जिनगी भर मीठ नहि खा सकैत छी
सूगर कम भेल ते तुरंते अहां के गूलकोज पीबए परत
केकरो हाय ब्लड प्रेशर अछि ते केकरो लो
कियो एड्स सं ग्रसित अछि ते कियो कैंसर मे जकड़ल

जतेक रास बीमारी अछि ततेक रास दवाईयो
कियो नीम-हकीम लग जाइये ते कियो कराबैये
एलोपैथी, होमियोपैथी आ आयुवेदिक इलाज
दुनिया भरि के डॉक्टर आ वैज्ञानिक
नब-नब रोग आ ओकर छुटाबैक दवा बनाबै मे लागल अछि

मुदा, हमरा जानल एकटा एहन बीमारी अछि जकर इलाज नहि
आजुक बाजारवाद, तथाकथित प्रगतिशीलवाद जुग मे
बाप करैयै बेटा पर शंका
बेटा करैये बाप पर शंका
माय करैये पूतोहू पर शंका
पूतोहू करैये माय पर शंका
ननद करैये भौजाई पर शंका
भौजाई करैये ननद पर शंका
जतय देखि ओतय शंके शंका

घर मे शंका, ऑफिस मे शंका
बॉस के शंका, कर्मचारी के शंका
किनय मे शंका, बेचय मे शंका
रौद मे शंका, मेघ मे शंका
पैइन मे शंका, दूध मे शंका
प्रेम मे शंका, घृणा मे शंका
दोस्ती मे शंका, दुश्मनी मे शंका    
सांस मे शंका, पलक झपकय मे शंका
खाय मे शंका, पीयब मे शंका
बुलय मे शंका, सुतय मे शंका
नोचय मे शंका, खुजलाबै मे शंका
शंके शंका, सनातन शंका
शंका ब्रह्मा, शंका विष्णु, शंका देवो महेश्वर
शंका साक्षात परम ब्राह्म, तस्मै श्री शंकायै नम:।

Thursday, January 28, 2016

हम कविता लिखब बिसुरि गेलहुं

हम कविता लिखब बिसुरि गेलहुं
आओर ककरा लेल लिखी ओ कियो नहि रहल अछि
फसल केर मारल खेतिहर आत्महत्या कs रहल अछि
भूकंप आ सुनामी मे लोक मारल जा रहल अछि
धर्मनिरपेक्षताक नाम पर राजनीति भs रहल अछि
लोकतंत्रक नाम पर लोकक गर घोंटल जा रहल अछि।

हम कविता लिखब बिसुरि गेलहुं
खेत पथार मे फसल नहि अछि
इनार पोखरिमे पइन नहि अछि
गाय महीसक लेल घास नहि अछि
काज करहि लेल मजूर नहि अछि
लोक लेल लोकक आंखि मे नोर नहि अछि।

हम कविता लिखब बिसुरि गेलहुं
घरमे कनिया के माय से पटय नहि अछि
जतय हम रहैत छी ओतय पड़ोसी सं गप होयत नहि अछि
कोनो पड़ोसी देस सं अप्पन देशक नीक संबंध नहि अछि
राजनीति मे नीक लोक भेटैत नहि अछि
ईमानदार लोक केकरो सोहाबैत नहि अछि।

हम कविता लिखब बिसुरि गेलहुं।
कलाकार कहाबैत अछि मुदा कला नहि जानैत अछि
रचनाकार कहाबैत अछि मुदा रचना नहि करैत अछि
साहित्यकार कहाबैत अछि मुदा साहित्य नहि जानैत अछि
ताहि सं हमर ह्रदय द्रवित अछि आ हम कविता लिखब बिसुरि गेलहुं।

Wednesday, January 27, 2016

ध्यान दिऔ गाम पर

ब्याहक ओहि मधुर बेलामे
आयल बाराती मिथिलाक एकटा गाममे
जखन लागल द्वार सौ सं बेसी बाराती
परिचय दैक लेल आयल घराती।

टूटल-फूटल अंग्रेजी-फ्रेंचमे करय लागल टपर टपर
लागय जना मांक आंचर मे सीखल आब करय यै खपड़-खपड़
पढ़ल लिखल विद्वान बारातीक मुंह हुए लागल चपर-चपर
कियो कनि बुझलक, कियो हंसलक मुदा सभ करय लागल धपड़-धपड़।

नहि केकरो बुझहि मे आयल कोनो उंह
सभ कियो एक-दोसराक ताकलक मुंह
ता धरि नहि रहल गेल एकटा बाराती के
घराती से माइक थामलक अप्पन हाथ के
बाजल तमतमाके मातृभाषा मैथिली मे
की बिसुरि जायब अप्पन मायके एडवांस बनैक फेरमे
हां, जिनगी आगू बढ़ैक निशानी अछि

मुदा अप्पन भाषाक छोड़ब कतौका होशियारीक अछि।
चीन, जापान, अमेरिका आंगा बढ़ल अछि अप्पन भाषामे
हम पश्चिमक देखौंस करैत बाजि रहल छी दोसरक भाषामे
जौं हमर माय अनपढ़, अंग्रेजी बाजय पड़ोसक काकी
ते एडवांसक चक्कर मे की काकीके कहब अप्पन मम्मी।

तहिना सुनू सब गोटे एतय
दोसराके मूर्ख बनाके जायब कतय
जे छी हमर भाषा, छी हमर माय
कतबैयो दुत्कारब तहियो बनल रहत गाय।

पेट भरय लेल जे बाजी भाषा
मुदा मनक सुतुष्टि देत यहि भाषा
दोसर भाषाक लेल अहां आन रहब
अप्पन भाषा बाजब ते अहांक आन रहत
गर्व करू भाषा पर, गर्व करू मैथिली पर
रहू कत्तौ मुदा ध्यान दियौ गाम पर।

Tuesday, January 26, 2016

मोह

नेनासे जवान भेलहुं, जवानीसं आयल बुढ़ाड़ी
दिन राती लागल रहलऊं, करैत रहलहौं बेगारी.
बाप-मायक बाद कनिया- संतानक आयल फेर
मन मानय या नहि मानय करैत रहलहौं चकारी.
साम दाम दंड औ भेदक करैत रहलहौं जुगाड़
नहि भेटल तहियौ संतुष्टि बनल रहलहौं नगारी.
नेनाक पढ़ायब घर बनायब करलहौं खूब धूरफंदी
जिनगीक एकटा मोड़ आयल जेब रहलहौं करारी.
उम्र बीतल आ बीतल गृहस्थ आश्रमक बेर
मोह-माया यहि अछि सब बनल रहलहौं मदारी.