Wednesday, December 24, 2008

हम हुनकर छी

हम हुनकर छी

जिनका स

रूप आ रंग पेने छी

हम हुनकर छी

जिनका स

संस्कार आ मर्यादा पेने छी

हम हुनकर छी

जिनका स

अक्षर आ शब्द पेने छी

हम हुनकर छी

जिनका स

कदम आ ताल पेने छी

मुदा, हम हुनका स अलग छी

जिनकर ओछापन आ छिछलापन

आत्माक आगू खसबाक लेल मजबूर करैत छथि।

Saturday, October 18, 2008

इन्द्रप्रस्थक कथा

इन्द्रप्रस्थक कथा
युग-युग सं
लिखल जा
रहल छैक
इन्द्रप्रस्थक कथा

द्वापर मे
अहि ठाम
छल पांडवक
राजधानी

जकरा पावैक लेल
अठाराह दिन तक
भएल महाभारत
मारल गेल हजारों लोक

समय बदलल
आब नहि छथि ओ पांडव
नहि ओ कौरव
मुदा, आबो मारल जाइत अछि लोक

तहिया उजड़ि गेल छल
गामक-गाम
आई कामनवेल्थक नाम पर
उजड़ि रहल छैक गरीबक झोपड़ी

हम पूछैत छी
शिखंडीक आगू कs
रचल गेल छल षड्यंत्र
सत्ताक लेल

भाई-भाई कs
दुश्मन भेल
मारि-काटि कs
करलक वंशक नाश

आब अहि इन्द्रप्रस्थ मे
वर्ल्ड क्लासक नाम पर
रचल जाइ अछि षड्यंत्र
गरीब कए भगाबैक लेल.

Thursday, September 18, 2008

नहि टाइम अपना लेल

नहि टाइम अपना लेल

नेना मे
गाम-घर मे
सुनैति रहि
नौकरी
नहि करी

तखन तs
एक कान से सुनि
दोसर कान
सs
उड़ा दैत रहि

मुदा,
जखन सs
नौकरी केलहुं अछि
बुझाब मे आबि गेल
नौकरीक भाव

नहि अपन
ठाम अs ठिकाना
जतय
कंपनी पठैलक
वहि ठाम ओ ठिकाना

नहि सुतैक टाइम
नहि उठैक लेल टाइम
नहि खाइक लेल टाइम
नहि टाइम अपना लेल
यहि छै नौकरी.

पार्टनर, अहांक मूल की

पार्टनर, अहांक मूल की

अहां कs मन छथि
कवि मुक्तिबोध
जखन हुनका
कियो नव लोक भेटति छलैन
तs पुछथिन
पार्टनर, अहांक पालिटिक्स की

आब तs
मुक्तिबोध नहि छथि
मुदा, मिथिला मे हुनकर गप
घर-घर मे
अहां सुनि
सकैत छी

ई गप जखन-तखन
नहि सुनबहि
मुदा, ब्याह-दानक
घटकैति मे
सुनबहि जरूर
पार्टनर, अहांक मूल की

अहांकs एहि गप मे
अंतर किछु
नहि लागत
मुदा, जमीन आ आसमानक
फ़र्क छैक

मुक्तिबोधक गप मे मानसिक आ
वैचारिक स्तर देखबा मे आबैत छल
जखन कि मिथिलाक संस्कार मे
निखटुओ जे छथि
पूर्वजक गुणगान मे
पेटकुनिया धेने भेटताह

एकटा गप
पुछै छी
आब कि
राजतंत्र छैक
जे राजाक बेटा
राजा होइत.