जे कथाकार नहि हुअए ओ कोन आ केहन कथा लिखत, एकर ठेकान तँ कियो नहि कऽ सकैत अछि। मुदा युवा पीढ़ीकेँ देखि कऽ कोनो कथा लिखब संभव नहि अछि आजुक कालमे। तकर बादो कियो हुनका लऽ कऽ लिखैत अछि तँ कहि सकैत छी जे ओ सभटा फूइस लिखि रहल अछि। एकरा मादे हमर ई तर्क अछि, जे युवा अछि ओ केना बुझता जे ओ सतमे युवा छथि या नहि। जखन एहि भारत मे 80 बरखक बुढ़ जे.पी. युवाक नेतृत्व कऽ सकैत अछि, जीवनक आखिर कालमे देशमे संपूर्ण क्रांतिक बिगूलि फूकि सकैत अछि, तखन युवाक उम्रक की सीमा मानैत अछि कियो।
नेनामे जखन स्कूल जाइत अछि तखन सभ सोचैत अछि जे कॉलेजमे खूब उछल-धक्का करब। कॉलेजमे गेलापर लागैत अछि जे करियर बना लेब तकर बाद तँ अपन जिनगी अछि आओर जखन करियर बनि गेल, ब्याह भऽ गेल तकरा बाद दुनिया सूझै लागैत अछि। जखन जिनगीक ई परिभाषा अछि तखन युवाक कोन कथा लोक सभकेँसुनाओल जाइत अछि। मां-बापक सपना, भाइ-बहिनक इच्छाक आगू अप्पन सपना तँ अधूरे रहि जाइत अछि। यएह हाल तँ आलोकक छल। हुनकर नजरिसँ देखियौतँ ओ कहियो युवा भेल या नहि स्वयं नहि जानैत अछि।
एकटा आओर गप, एहि कथाक शीर्षकपर एखन नहि जाऊ। अहाँ तँ जानतै छी जे ब्याह करहि लेल लड़का घोड़ीपर बैसि कऽ बाराती जाइत अछि। मुदा आब हमरा ई नहि कहबै, ‘आंय हो, हमरामे तँ लड़का घोड़ीपर बैसि कऽ बराती नहि जाइत अछि। ई कोन गप अहाँ कऽ रहल छी’। एहि गपमे हम एतेबे टा कहब जे अहाँक बिरादरीमे ई विधि नहि होइत अछि, एकरामे हम कत्तौसँ दोषी नहि छी। किएक तँ जिनकर जाति, वंशमे जे भेल आयल अछि, आ॓हि विधिकेँ हटायब 21म शताब्दीमे बड़ कठिन गप अछि। फेर ईहो गप अहाँ हमरा नहि कहि सकैत छी जे कत्तौ घोड़ी पर चढ़ि कऽ डिग्री लेल जाइत अछि। तँ सुनू ई, जे गप छैक, ‘घोड़ी पर चढ़ि लेब हम डिग्री’, ई हमर नहि अछि। ई गप आलोक बाबू हमेशा कहैत छला।
आलोककेँ अहों तँ नहि जानैत छी। ओ, ओ आलोक नहि अछि जकर अर्थ रोशनी होइत अछि। ओ, ओ आलोक अछि जे माँ, पिता, बहिनक कारण अप्पन सपनाकेँ घूरिमे जरा कऽ आस्ट्रेलियाक ब्रिसबनमे रहैत अछि। पिछला तीन बरखसँ ओ अप्पन देश नहि आयल अछि। ओतय तीन शिफ्टमे काज करैत अछि। हुनका नीन नहि होइत अछि। लागैत अछि जे हुनका नहि सुतबाक बीमारी भऽ गेल छनि। मुदा आलोक बाबू एकटा जिंदा मशीन अछि जे अप्पन सपनाकेँ मारि कऽ लोकक सपनाकेँ यथार्थमे बदलहि लेल काज करि रहल अछि। हुनकर जिनगीक कथा मझधारक एहन नावक कथा अछि जकरा कोनो दिशा नहि देल जाइत अछि। मां-पिता हुनकर जिनगीक खेवनिहार अछि, जेना ओ चाहता, ओहिना हुनकर दिशा भऽ जाएत।
छत्तीसगढ़क राजधानी अछि रायपुर। ओहि शहरमे एकटा मोहल्ला अछि शंकरनगर। एतय पिता बड़ मनोयोगसँ एक-एक पाइ जोड़ि कऽ घर बनौने रहथिन। आलोकक पैतृक घर तँ भिंड-मुरैना लग रहनि। जतौका जंगलमे कहियो डकैतक राज चलैत रहै। पिता, के.जी.कुशवाह, फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया मे काज करैत रहथि। हुनकर ब्याह भोपाल भेल छल। दूटा बच्चा छल। पहिलुक आलोक आ दोसर बेटी किनू। दुनू पढ़ैमे खूब तेज। मुदा रायपुरमे रहैक कारण हिन्दी माध्यममे पढ़ाइ भेल छलनि। तहिसँहुनकर अंग्रेजी कमजोर छल।
मां-पिताक सपना छल जे हुनकर बेटा खूब पढ़ि-लिखि कऽ बड़का आदमी बनि जाए । इंटर केनहि कालमे माँ सोचथिन जे हमर बेटा सी.ए. बनि कऽ नाम कमाबै। ताहिसँहुनकर एडमिशन बी.कॉममे कएबा लेल जिद पकड़ि लेलखिन। एकटा बेटा ओहिनो माँकेँ बेसी दुलारु होइत अछि। आखिरकार माँक जिद मानल गेल आओर आलोक बी.कॉम मे एडमिशन लऽ लेलक। बी.कॉम मे नीक मार्क्स अएलै आओर सी.ए. क तैयारी लेल आलोक दिल्ली आबि गेलाह.
दिल्लीक पूर्वी इलाका लक्ष्मीनगर सी.ए. क गढ़ मानल जाइत अछि। एतय कतेक सी.ए. केँ तैयारी करबैक लेल कोचिंग संस्थान अछि, अंगुरीपर गिनलो नहि जा सकैत अछि। आलोक एकटा नीक कोचिंग संस्थानमे एडमिशन लेलक। कामर्स तँ नीक लागैत छलहुनका मुदा सी.ए. बनैक कोनो चार्म नहि छल। कोचिंग करैत, एक-दू बेर ओ परीक्षा देलक मुदा ढ़ाकक तीन पात रहल। ओहिनो हर बरख पाँच पर्सेंट तँ सी.ए.क रिजल्ट होइत अछि। करीब तीन साल तक दिल्लीमे रहलाक बाद रायपुर घुरि आयल। मायक सपना अपूर्ण रहि गेलनि। सी.ए. बनैक कोशिश रंग नहि आयल। एकटा आलोक छल जे कखनो मां-पिताक आगू अप्पन सपनाक गप नहि बतैलखिन। जहिना जे गप दुनू प्राणि कहैत छल, तहिना आ॓ मानैत छल। किछु दिन डिप्रेशनमे रहलाह आलोक। मुदा माय तँ माइये होइत अछि। नया सपना देखैमे कोनो दोषो नहि अछि।
किछु दिन बीतल तँ घरमे कलह हुअए लागल जे आलोक आबि कऽ की करताह? घरमे अनुशासन एतेक कड़ा जेकर गप कहलो नहि जाय। दुनू भाइ-बहिनकेँ माँ-पिता जे कहतियै, से ओ सभ करै। अहिमे एक दिन मांक मनमे आयल जे बेटा सी.ए. नहि बनल तँ की भेल, ओ वकील बनताह। हुनका कियो सुझाव देलनि जे वकील तँ गांधीजी सेहो छल, जवाहरलाल नेहरू सेहो, जखन ओ प्रधानमंत्री बनि सकैत अछि तखन अहाँक बेटा तँ ओकरोसँ तेज अछि। आलोककेँ कहियौ जे ओ एल.एल.बी. मे एडमिशन करा लेताह आओर शहरमे कॉलेज अछि। खूब मन लगाकऽ पढ़ताह आरायपुर राजधानी भऽ गेल अछि, खूब केस-मुकदमा हेबे करत, ताहिसँ हुनकर वकालतक धंधा खूब चलत। आखिरकार जहिना माँ क मन बदलल आलोकक करियरक राह सेहो बदलि गेल। आब ओ बैरिस्टरीक पढ़ाइ लेल एडमिशनमे जुटि गेल। हुनकर मेहनत आओर माँक आशीर्वाद रंग आनलक।
कॉलेज तँ कॉलेज। ओहियो मे लॉ कॉलेज। पढ़ाइ की होएत। नहियो गेलाक बाद एटेंडेंस बनि जाइत छल। बस प्रोफेसर के आगा-पाछां करैत रहू, एटेंडेंस बनि जाइत। फार्म भरू,गेस पेपर से पढ़ि लियौ आओर परीक्षा के एकाध हफता पहिलै टीचर से ‘सजेशन’ लऽ लियौ। अहियो स नहि संतुषि्ट हुए तँ पिछला पांच सालक क्वैचश्न पेपर देखिकर खास-खास सवाल कऽ रटि जाऊ। ओकरो से नहि हुए तँ जे अहांक रूम मे गार्डिंग कऽ रहल अछि, हुनका सेट कऽ दिओ कि ओ परीक्षा हॉल मे एक कोना धरि के पूरे काल उंघैत रहै। बस फेर की। गेस पेपर छबे करल नहि तँ ‘सर’ के बनाओल नोट्स कोन दिन काज आयत। ओकरा बिथायर कऽ सभटा सवालक जवाब लिखैत जाऊ। एतबैयो साहस नहि अछि तँ परीक्षा के एक दिन पहिलुका राति मे छोट-छोट पुरजा बना लियै आओर मोजा,कॉलरक पाछां नहि तँ अंगाक आस्तीन मोरि कऽ ओकरा मे नुका लियो ओ पुरजा कऽ।
जब देसक एहन शिक्षा होएत तखन शिक्षा प्राप्त करहि बला केहन। अनुमान लगा लियौ। आखिर जे सभ शिक्षक बनल अछि ओ की कोनो पूरा कोर्से पढ़िकै बनल अछि। जे हुनि आदर्शक गप करत। चोरी तँ चोरी होएत अछि। चाहे अहां दू टा पाई चोरि करू या फेर परीक्षा मे ‘चीटिंग’। यहि कारण छल जे बाप बेटा कऽ कहैत छलाह जे कोर्स खत्म नहि भेल अछि तँ कोना चीटिंग कऽ लिओ। ओहिनो हमर सभक मतलब मैथिल मे दैत छी गप लिओ लपालप चलतै अछि। आओर मारि कम बपराहैट बेसी अहि लेल तँ कहल जाइत छल। पूरा साल तँ उछल-धक्का करै सं फुरसत नहि, मुदा परीक्षा नहि पास करहि सकलहुं तँ माय-बाप सं लऽ कऽ सभ कियो कहैत रहताह, ‘हेयौ जानैत छिये। अहि बेर बड़ कठिन सवाल आयल छल। हमरो टीचर से कहैत छलाह।’ और तँ और, अपन मौनक जोगर टीचर से कहा लेत, ‘दस टा मे से पांच टा कोश्चन तँ सिलेबस से बाहर के रहैत, तँ कोनो कियो सवालक जवाब लिखतै।’ आओर कानाफूसी ईहो होएत, ‘अहि बेर खूब टाइट परीक्षा भेल। ओ दरोगा मंडल,जे आयल छल, बड़ बदमास अछि। हिलै तक नहि देलक।’ ई तँ भेल परीक्षाक गप। जखन परीक्षा भऽ जाइत अछि। तखन कॉपी कतय जचां रहल अछि, ओकर पता लगाबै लेल दिनराति बौआ रहल अछि।
मिथिला मे ते जानते छी, बेटा-बेटी मे की फर्क होएत अछि। बेटा जे जखन चाहत ओ मिलै ओकरा। मुदा बेटी तँ ऑन घर जाइत। ओकरा खिया-पिया के की होएत। बेटी के पेट तँ नून रोटी खायक भरि जाइत मुदा बेटा कऽ तँ दूध-भात चाहि। बेटा अंग्रेजी मीडियम मे पढ़त, मुदा बेटी ते सरकारी स्कूल मे जाइत अछि, ई की कम अछि। यहि हाल छत्तीसगढ़ के छल। जे कहियो आलोक बाबू के घर आओर जे समाज मे ओ रहैत छल, ओहिने छल। आलोक बाबू लॉ कॉलेज मे एडमिशन लेलाह तँ जरूर मुदा पढ़ैक जरूरत की छल। शुरू मे एकाध दिन कॉलेज गेलाह, जखन दोस्त-मुहिम बनि गेलाह,टीचर चिनहै लगलाह तखन फेर बाते की। घर से रोज टाइमे पर निकलैत छलाह, मुदा लॉ पढ़ैत छलाह या किछु आओर, से आलोक बाबू टा जानैत छल। मुदा सांझ मित्झर भेला पर घर जरूर टाइम से घुरि जाइत छल। घर मे सभ कियो बुझैत छल जे ओ तँ क्लास कऽ कऽ आबि रहल अछि। कहियो हाथ मे दू टा लॉ के किताब झूलाबैत घुरैत छलाह, तँ कहियो कोनो हाथ मे केकरो नोट्स लऽ कऽ। मुदा नीक गप हो या अधलाह,नुकायल तँ नहि रहैत अछि। आलोक बाबूक किरदानी लोकक आगू आबै लागल।
शहर मे हुनकर नीक दोस्त छल तँ बदमाशो दोस्त ओतबै छल। हुनकर कॉलेज मे 25साल से एकटा परंपरा छल, जे क्लास के बदमाश लड़का सभ आगूक बैंच पर बैसैत छलाह। मुदा आलोक बाबू जखन एडमिशन लेलक तँ हुनकर दोस्त किछु अहिनो छल। ताहि से ओ अगलका बेंच पर बैसऽ लगलाह। चूंकि हुनकर पिता के शहर मे एकटा इज्जत छल। ताहि सं लोक मानैत छल जे आलोक बाबू नीक होएत। मुदा लोक ई नहि बुझैत छल जे यदि अहांक खानदान नीक अछि, एकर मने ई नहि भेल जे अहों नीक होयब। लेकिन ई गप की बुझैता लोक-बेद कऽ। एखनो देखियो नै, ई जाति, गोत्र, मूल,मूलक ग्राम की होएत अछि। ओहि काल मे जे ऋषि भेल हुनकर हम सभ वंशज अछि। एकर मने ई तँ नहि भेल जे हमहूं ऋषि भऽ गेलहुं। हाथक पांच आंगुर की बराबर अछि। घर मे चारि भाई अछि, सभक अलग-अलग विचार आओर आदत अछि। तखन हम कोना कहि सकैत अछि जे खानदान से लोकक आदत, संस्कारक निर्धारण होएत अछि। की राजेंद्र प्रसाद के खानदान की राष्ट्रपतिये छलाह। ललित नारायण मिश्र कतेक बड़का नेता भेलाह, मुदा खानदान मे कियो क्या नहि भेल। जगन्नाथ मिश्रक नाम चारा घोटाला मे आयल। लालू यादवक खानदान चरवाहा के अछि। मुदा ओ बिहार पर एतेक दिन शासन करलाह जे एखैन धरि कियो नहि करलाह छल आओर आगू के करताह कहल नहि जाई सकैत छी।
तखन आलोक बाबू तँ आलोक बाबू छल। पढ़हि मे नीक छल ताहि से नीक स्टूडेंट हुनका सं दोस्ती करते छलाह, मुदा अधलाहो सोचैत छलाह जे हुनका संग रहि के किछु तँ नीक गप आ पढ़ैक लेल जानकारी भेटत। अहि बीच एक दिन हुनकर मन मे आयल जे अंग्रेजी नीक नहि होएत तँ जिनगी मे किछु नहि कऽ सकब। फेर की छल। ओ पूरा शहर ताकि गेलाह जतय अंग्रेजी बाजै लेल आओर ग्रामर कियो सिखा दिया। मुदा रायपुर तँ रायपुर छल। ओहि काल ओतय एडवांस नहि भेल छल जे अंग्रेजी पढ़ाबैक लेल कियो भेटतियै। ओ निराश भऽ गेल छलाह। मुदा एक दिन हुनका पता चलल जे शहर के बीचोबीच जे ‘होटल निहार’ अछि ओतय किछु भेट सकैत अछि।
रायपुर मे जतय कॉलेज अछि ओकरा मे पढै बला नीक सभ छात्र सभ शुक्रवार के आबैत छलाह। शहर के जे छात्र बैंक क्लर्क, पीआ॓, एसएससी, एमबीए के परीक्षाक तैयारी करैत छलाह, ओ ओतय सांझ मे आबैत छल। बैनर छल रोट्रेक्ट क्लब। रोटरी के यूथ विंग। एकर बैनर तल सभ मिलि कए खूब ग्रुप डिस्कशन करैत छल। जेनरल नॉलेज एक-दोसरा से पूछैत छलाह। एक्सटेंपरी मे सेहो भाग लैत छल। लड़का-लड़की मे कोनो भेद नहि होएत छल। एतय लागैत छल जे किछु सार्थक काज भऽ रहल अछि। रायपुरक रोट्रेक्ट क्लबक इतिहास रहल अछि जे ओतेक बेसी सदस्य देशक कोनो परीक्षा हुए सभमे खूब नीक करलक छल। आबि आलोक बाबू के जिनकी बदलि गेल छल। ओ सभ शुक्र कऽ रोज होटल निहार जाय लगलाह। आपस मे अंग्रेजी बाजैत छलाह। शुरू मे दिक्कतो भेल, मुदा धीरे-धीरे बाजहि लगलाह।
एकाएक आलोकक बात-व्यवहार सभटा सेहो बदलहि लागल। एक दिन क्लब मे फिल्म कऽ लऽ कऽ गप शुरू भो गेल। आखिरकार गपशप मे ई गप पर जोर देल गेल जे सभ कियो अप्पन-अप्पन वृतांत सुनाओल जाए जे हुनकर फिल्म देखबात आतुरता आओर फिल्म संस्कार कोना भेटल। जतेक गोटा रहैत ओतय, सभ अप्पन-अप्पन गप सुनाबहि लागल। कियो कहलक, पापा के पॉकेट से पैसा चुराकऽ देखलहि रहि फिल्म। कियो कहलक जे माम के साथ गेल रहि तँ किओ कहलक स्कूल से भागि के गेल रहुं फिल्म देखने। आप जखन आलोक बाबू के पारि आयल फेर की छल। हुना संग तँ गपक खजाना आओर अनुभव के विस्तर छल। ओहिनो अहां जानैत हेबै जे मुकि्तबोध कहने छलाह जे जिनका संग जतबे अनुभव हेता हुनकर रचनात्मक क्षमता ततबेक बेसी हेता। ई गप आलोक बाबू पर बेसी बैसल रहै। फेर की छल, शुरू भऽ गेलाह आलोक बाबू। ओहि दिन जे ओ ओतय भाषण देलैन से महीना भरि सभक मुंह पर छल। जे जतय मिलतियै ओ ओतय आलोक बाबूक फिल्म देखहिके किस्सा बाजैत छल। आहि बैठकक गप क्लब के पत्रिका मे सेहो छपल छल। फिल्मक लाऽ कऽ कहने की छल, लोक कऽ आनंद विभोर कऽ देलक। ओ लिखने छलाह, फिल्म, फ़िल्म और फ़िल्म। ,ई शब्द छल कि आओर कुछु। एकरा सं परिचय कोनो भे, क्या भेल, एकर मैन तँ अछि। दिवाल पर चिपकल पोस्टर, अखबार मे छपल फोटो, गली-मोहल्ला मे लाउडस्पीकर मे बाजैत गाना आओर डायलॉग या रेडियो मे प्रसारित होए बला गाना मन-मस्तिष्क कऽ खटाखटा कऽ राखि दैत छल। शादी-ब्याहक काल माहौल कऽ मदमस्त करैत फिल्मी गाना हुए या जनवरी आ अगस्त मे बजै बला देशभक्तिक तराना, नेना मे अठखेली के संग कौतुहलक विषय छल। ओ एहन काल छल जखन फिल्मी पोस्टर देखहि कऽ मन होएत छल जे हमहूं स्मार्ट बनि जाय आैर ओहिने फैशन करैत रहि। एकटा समय रहिक जखन फिल्म कऽ लऽ कऽ किछु नहि जानैत रहि आओर सभटा हीरोइन एक्के जना लागैत छल। मन ही मन सोचैत रहि जे गाना बजैत कोना अछि, डायलॉग कोना बाजैत अछि, हीरो मैटि से उपर उठि कऽ परदा पर कोना आबैत अछि। की पोस्टर पर जे स्टंट होएत अछि ओ सच्चे मे होएत अछि की नहि।
आगू लिखने छल, 'मां कहैत अछि। कोनो अहिनो काल छल, जखन हम सभ सभटा शनि दिन फिल्म देखैने जाइत छलहुं। अहि दिन घरक सभ लोक फिल्म देखहि लेल जाइत छलहुं। ई ओहि कालक गप अछि, जखन हम जन्म नहि लेलहुं छलहुं। मां के मन मे एखनो घुमरैत रहि अछि ओ दिन।" जखन हम होश संभालनौ तँ घर मे ओ रेडियो कऽ बाजैत देखलहुं जे पापा कऽ शादी मे भेटल छल। घर के जे सभ फुर्सत मे रहताह ओ आकाशवाणी से प्रसारित होहुं बला गाना सुनैत रहैक, एफएम ते ओहि काल मे रहबे नहि करै। जकर एहन घर रहताह, ते नेना से गाना सुनहि के आदत केकरा नहि लागत। ओनो बाबा खूब गाना सुनैत छल आ गाबैतो छल।
एकटा गप तँ छल। आलोक बाबू के मुंह में सरस्वती बैसेत छलि, क्याकि जखन ओ बाजब शुरू करैत छल, तँ लोक बेद सभ काजि छोड़िकऽ हुनकर गप सुनैहि मे लागि जाइत छल। वैह भेल ओहि दिन। रायपुर के लोक कहैत अछि जे ओ दिन शहर के लिए अलगे दिन छल। भरि राति हुनकर भाषण चलल रहल। क्लब मे जे सभ छल ओ ओहि राति घर नहि गेल छल। तीन बजे भोर धरि फिल्मक संस्कारक गप ओ कैने छलाह। घर मे मां-पापा सभकियो हुनका लेल तंग भऽ गेल छल जे ओ राति मे नहि आयल छल। मुदा सभ कियो जानैत छल जे आलोक बाबू कतो हेता तँ नीके से हेता आओर कोनो काजक कारणे घर नहि आयल छल।
हुनकर संगी नीलेंद्र बाजैत छल जे ओ एक गिलाह पानि पिब के फेर बाजब शुरू करने छल। घर मे रेडियो से जानल छलौंह जे गाना की होएत अछि। लाउडस्पीकर मे बाजैत आ गाम मे होय बला नाटक से जानलौंह जे कोन शहंशाह के डायलॉग अछि आओर कोन गब्बर सिंहक। आहि काल मे टेलीविजनो देखलहुं। इंदिरा गांधी आओर राजीव गांधीक अंतिम संस्कार के टीवी पर देखने रहि। मन चंचल आओर स्वभाव अछि जिद्दी। रविक सांझ मे फीचर फिल्म देखैने दोसरा कतए जाइत रहि। बुध आओर शुक्र के सेहो चित्रहार देखैत रहि। मुदा फिल्म तँ इंटरवले तक देखैत रहि क्याकि ओहि काल साढ़े आठ बजे राति बड़का राति भो जाइत छल। आलोक बाबू कहैत छल जे हम ओ उम्र के ओ पड़ाव से गुजैर रहल रहि जखन हमर संगी-साथी नुका कऽ बीड़ी-सिगरेट पिबैत छलाह, फिल्म देखैले जाइत छल, सेक्स कऽ गप करैत छलाह आओर एतय तक कि मारपीट सेहो। मुदा हमर सोच ओहियो काल आओर आजु उल्टा छल। हमर कहब छल जे सभटा लोक काज करैत अछि ओ काज हम नहि कर। यहि कारण छल जे हमर दोस्तक ग्रुप नहि बनल। दोस्तक देखौंश में सिगरेट के मुंह तँ लगैलो मुदा नुका कऽ काज नहि नीग लागैत छल ताहि से नहि पिबलहुं। शाकाहारी तँ नेने से छी। फिल्म देखैक मन भेल तँ लागल जे तीन घंटा धरि भूखिहि रहै पड़त। घरक लोग फिल्म देखहि लेल नहि जाइत छल तखर हमर अकेले जाइत कोनो सवाल नहि रहैक।
आलोक बाबू तँ पूरे किस्सागो छल। एक-एक शब्द सोचि-समझि आओर कऽ कहैत जा रहल छल। एक-एकटा गप ख्याल पारि कऽ कहैत रहि आओर लोक सुनैत छल। कहैत अछि स्कूल मे गर्मी आैर दशहरा के नब्हर छुट्टी होएत छल। सभकियो गाम जाइत छलौंह। गामक लोक फिल्म देखहि कऽ लऽ कऽ खूब गप करैत छल। सभटा गप हम चुपचुाप सुनैत रहि। गाम मे जिनकर ब्याह होएत छल, ओ अपन कतनया के फिल्म देखाबैक लेल लऽ जाइत छल। हमहुं सोचैत छलहुं जे सच्चे फिल्म देखबाक कतेक रोमांचक होएत हेता। किछु नहि किछु मन लागै बला जरूर देखाबैक अछि जे गामक लोक ब्याह के बाद फिल्म देखहि लेल जाइत अछि। हमूहि मन मे प्लानिंग बनबैत रहि जे ब्याह हैत तँ सबसे पहिलुक काज करब जे कनिया कऽ लऽ कऽ फिल्म देखहि लेल जायब।
जारी...
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