कतेक दिन बाद आय
मन परैत अछि रामप्रसाद
आ॓ रामप्रसाद
जेकर पिता आ पितामह
हमर पितामहक हरवाहा छल
मन परैत अछि
हुनकर हर
जकरा सं खेत जोतैक छल
भोर आ॓ सांझ
ताहि दिन कतेक
मन लगैत रहैक गाम मे
आ॓हि हर मे जोतैत छल
दू टा बरद
बरद के घंटी
आबो बाजैत अछि कान मे
मन परैत अछि
जखन धान काटि कऽ
बोझ राखल रहै आंगन
आ दुआरि पर
मुदा, समय बीतल
नहि रहल आब रामप्रसाद
नहि रहल आब पितामह
नहि रहल आब दुआरि पर हर आ बरद
गाम मे ट्रक्टर आबि गेल
थ्रेसर सऽ आबि काज होइत अछि
ताहि सं नहि नींद टूटैत अछि घंटी सं
आ नहि बोझ रखाइत अछि आंगन मे।
Friday, October 23, 2009
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